दो नैनों में भर प्रितम तुझे

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हे मेरे करूणानिधि हरि प्रितम…?
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दो नैनों में भर प्रितम तुझे
खुद ही खुद इतराता हूँ…..
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रसना ना बोले ना सही
हर घड़कन में हरि को पाता हूँ…
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जानता हूँ तुझे जान ना पाउँगा
फिर भी तुझे ही प्रितम कहता हूँ….
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कभी मिलन की क्या सोचूँ प्यारे
तुझमें ही घुला घुला सा खुद को पाता हूँ….
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जानता हूँ तृण भी नहीं मैं
हरिप्रितम का हूँ ऐसा भाव फिर भी रखता हूँ…
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” श्री राधा विजेयते नमः ”
” नमामि श्री बरसाना धाम ”
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???जय श्री राधे राधे जी??

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