मेरे कान्हा”
बांवरी बन डोलू मैें तो वन वन में।
कभी बरसाना कभी वृन्दावन में।
रज लगा ली ब्रज की पूरे बदन में।
बस तुमसे मिलन की आस है इन अखियन में।।
जय श्री वृन्दावन बिहारी जी
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मेरे कान्हा”
बांवरी बन डोलू मैें तो वन वन में।
कभी बरसाना कभी वृन्दावन में।
रज लगा ली ब्रज की पूरे बदन में।
बस तुमसे मिलन की आस है इन अखियन में।।
जय श्री वृन्दावन बिहारी जी
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