मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,_
आसमाँ से ज्यादा ज़मीं की कद्र जानता हूँ।
लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधियाँ,
_मैं मग़रूर दरख़्तों का हश्र जानता हूँ।
_छोटे से बड़ा बनना आसाँ नहीं होता,
जिन्दगी में कितना ज़रुरी है सब्र जानता हूँ।
मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,
छालों में छुपी लकीरों का असर जानता हूँ।
कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,
_क्योंकि आख़िरी ठिकाना मेरा मिट्टी का घर जानता हूँ।
? शुभ प्रभात
?प्रणाम?
?प्यारी सी सुबह का?
?प्यारा सा राम राम?
????????? ????
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