ये चन्द पंक्तियाँ जिसने भी लिखी है, खूब लिखी है,
ग़लतियों से जुदा तू भी नही,
मैं भी नही,
दोनो इंसान हैं, खुदा तू भी नही,
मैं भी नही,
” तू मुझे ओर मैं तुझे इल्ज़ाम देते हैं मगर,
अपने अंदर झाँकता तू भी नही,
मैं भी नही “,
” ग़लत फ़हमियों ने कर दी दोनो मैं पैदा दूरियाँ,
वरना फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नही,
शुभ सुप्रभात
??आप का हर पल मंगलमय हो ??
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