हे कृष्णा,,,,
गोविंद…….
“मन मंदिर मे बैठाकर तुझे, नित भाव की गंगा बहा दूँ।
कुछ और देने को नही साँवरिया, बस भावों का भोग लगा दूँ।।
तेरी मोहनी सूरत को साँवरिया, इस दिल मे समा लूँ।
और जीवन को तेरे नाम के, फूलो से सजा दूँ।।
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?कान्हा मेरी जिंदगी ?
मन मंदिर मे बैठाकर तुझे
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