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भूल गयी मैं केशव खुद को,इन कुंज गलियों में,
आस तेरे मिलन की है ,इन कुंज गलियों में..
कान्हा बिन राधा,राधा बिन कान्हा अधूरा हैं,
अँखियाँ तरसे मिलन को,इन कुंज गलियों में.
हृदय में बसे मनोहर,ढूंढू फिर भी इत्त-उत,
ढूंढे हैं सब सखियां भी, इन कुंज गलियों में.
आ जाओ श्याम अब,नाता ना किसी ओर से,
धूमिल ना हो जाए साँसे, इन कुंज गलियों में.
???जय श्री राधे कृष्णा जी ???
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