परहित बस जिन्ह के मन माहीं

रामचरितमानस चिंतन ?

?परहित बस जिन्ह के मन माहीं।
?तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥

*भावार्थ:- जिनके मन में सदैव दूसरे का हित करने की अभिलाषा रहती है अथवा जो सदा दूसरों की सहायता करने में लगे रहते हैं, उनके लिए सम्पूर्ण जगत्‌ में कुछ भी (कोई भी गति) दुर्लभ नहीं है
??जय श्री कृष्ण????


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