कहाँ तक ये मन को अँधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे
कभी सुख, कभी दुःख, यही जिन्दगी है
ये पतझड का मौसम, घड़ी दो घड़ी है
नए फूल कल फिर डगर में खिलेंगे शुभ प्रभात
꧂ जय श्री कृष्णा ꧁
कहाँ तक ये मन को अँधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे
कभी सुख, कभी दुःख, यही जिन्दगी है
ये पतझड का मौसम, घड़ी दो घड़ी है
नए फूल कल फिर डगर में खिलेंगे शुभ प्रभात
꧂ जय श्री कृष्णा ꧁
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