प्रातः वंदन ??
हम एक दूसरे के साथ कर्मों की डोरी से
बँधे हुए हैं अपने कर्मों के लेन-देन का
हिसाब पूरा करने के लिए यहां आते हैं
संसार में कोई माँ-बाप तो कोई औलाद
बनकर आ जाता है कोई दोस्त और
कोई रिश्तेदार बनकर आ जाता है
जैसे ही प्रारब्ध के कर्मों का हिसाब
ख़त्म हो जाता है हम एक-दूसरे से
अलग होकर अपने रास्ते पर चल देते हैं
यह दुनिया एक रैनबसेरा की तरह है
जहां सब मुसाफ़िर रात को इकट्ठे होते हैं
और सुबह होते ही अपनी राह चल देते हैं
हम सभी पंछियों की तरह हैं
जो सांझ होने पर पेड़ पर आ बैठते हैं
और सूरज की पहली किरण आते ही
अपनी-अपनी राह उड़ जाते है
? सुप्रभात ?
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