जाने कब मन के बढ़े चरण श्याम
तुम्हारी ओर
जाने कब दिशा बदल गई मेरे
मन की
जाने कब तुमने दर्शाया आकर्षण
अपना
फिर सुधि ही न रही मुझको अपने
तन मन की
मन मीरा बन कर गा लेता कुछ गीत
अछूते से
यदि तुमसे भी न में कुछ कहता तो
रहती मन में मन की
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जय श्री राधे
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